गया
नगर निगम चुनाव : एक निराशाजनक तस्वीर
बिहार
में नगर निकायों के चुनाव हो रहे हैं । गया नगर निगम के प्रत्याशियों की जो सूची
उपलब्ध है , वह
निराश करनेवाली है । कुल 53 वार्डों में खडे प्रत्याशियों पर
निगाह डालने के बाद मात्र १५-२० उम्मीदवार हीं योग्य दिखते हैं लेकिन सबसे दुखद
बात जो हमारे सर्वे में उभर कर आई है , वह है मतदाताओं का
विचार । अच्छे प्रत्याशियों के बारे में मतदाता यह तो स्वीकार करते हैं कि वह
अच्छा है परन्तु साथ हीं साथ यह भी कहते हैं कि वह जीतेगा नही इसलिये उसे वोट दे
कर अपना मत बर्बाद क्यों करें । मतदाताओं के अपने अपने तर्क हैं। जात, संप्रदाय से लेकर पैसा और बाहुबल का हवाला दे रहे हैं मतदाता । यह सब को
पता है कि चुनाव न सिर्फ़ निष्पक्ष होगा बल्कि चुनाव के नियमों के उलंघन्न का दोषी
पाये जाने पर प्रत्याशियों के उपर कडी कार्रवाई भी होगी , उसके
बाद भी मतदाताओं का तर्क बहुत हद तक सही है ।
अभी
से जातिवाद, संप्रदायिकता,
पैसा और शराब का प्रभाव नजर आने लगा है । गरीब राज्य बिहार में दस
दिन तक मुफ़्त में शराब, भोजन तथा जीतने के बाद ठेका पट्टा
देने का लालच निष्पक्ष चुनाव के प्रयास को मात दे रहा है । इसका कारण सरकारी तंत्र
है ।
हमने बिहार मीडिया के माध्यम से, अधिकारियों को इमेल और
पत्र देकर हमेशा नगर निगम गया के भ्रष्टाचार को उजागर किया है तथा मांग की जांच
कराने की, काश एक बार भी गया नगर निगम के भ्रष्टाचार की जांच हो गई रहती तो आज कम
से कम निवर्तमान नगर निगम गया का कोई पार्षद दुबारा चुनाव लडने के योग्य नही रहता
। हमे भी किसी चमत्कार की आशा नही है । रातो रात परिवर्तन संभव नही है । बदलाव आयेगा लेकिन समय लगेगा । आज भी हमारा प्रयास जारी है । आज पुन: हम कुछ साक्ष्य यहां दे रहे हैं पिछले नगर निगम के भ्रष्टाचार के बारे में ।
आधे पार्षद ठेकेदार बन गयें और बाकी कमीशनखोर यही सच था गया नगर निगम का । अभी जैसे प्रत्याशी खडे हैं , उनसे अच्छे कार्यों की उम्मीद कोई दिवास्वप्न देखने वाला हीं करेगा लेकिन जब मतदाता हीं अच्छे व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहता तो चुनाव आयोग , प्रशासन या सिविल सोसायटी क्या कर सकती है सिवाय मतदाताओं के अंदर जागरुकता पैदा करने के । हम वही कर रहें हैं इस आशा के साथ कि शायद आनेवाले दस - बीस साल में परिवर्तन हो ।
निगम चुनाव की घोषणा के मात्र कुछ दिन पहले गया नगर निगम नें तकरीबन एक करोड रुपये का ठेका वैपर लाईट लगाने के लिये दिया । जानबूझकर ठेके की शर्त में एक ऐसी शर्त का समावेश निगम के कनीय अभियंता और कार्यपालक अभियंता ने किया जिससे ठेके में प्रतिस्पर्द्धा न हो और एक विशेष फ़र्म को ठेका मिल जाये। प्रतिस्पर्द्धा होने की स्थिति में एक करोड की जगह मात्र साठ - सत्तर लाख में वह कार्य होता । वैपर लाईट के लिये गुणवतावाली कंपनियों का चयन किया गया था परन्तु उन कंपनियों के सामान की जगह डुप्लिकेट सामान लगाया गया । यह सारा काम कमीशन के लिये हुआ। वैपर लईट निवर्तमान पार्षदों के निर्देश पर लगाया जा रहा है ।
इसके अलावा प्रत्येक वार्ड को ३-३ लाख रुपये का आवंटन किया गया विकास कार्य के लिये ताकि चुनाव में पार्षद असंतुष्ट मतदाताओं को लुभा सकें ।
यह सही है कि चुनाव आयोग का काम किसी विभाग के भ्रष्टाचार की जांच का नही है मगर उस प्रकार का भ्रष्टाचार जो चुनाव को प्रभावित करने की नियत से किया गया है उसकी जानकारी प्राप्त होने पर संबंधित जांच एजेंसी को जांच के लिये निर्देश देने का कार्य तो चुनाव आयोग कर हीं सकता है । आज अगर चुनाव आयोग तत्परता दिखाये और गया नगर निगम के वैपर लाईट वाले ठेके की जांच का आदेश दे तो भ्रष्टाचारलिप्त उम्मीदवारों में भय पैदा होगा तथा मतदाताओं के बीच भी यह संदेश जायेगा कि भ्रष्टाचार में लिप्त रहने वाले पार्षद बच नही सकते । अभी और भी साक्ष्य हैं उनके आधार पर अगर जांच होगी तो भ्रष्टाचार में लिप्त पार्षदो को सबक मिल सकता है ।
मदन कुमार तिवारी
संपादक बिहार मीडिया
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